गाँव की याद में ग्रामाीण विकास के लिए समर्पित !
गाँव की याद में ग्रामाीण विकास के लिए समर्पित !
भारत आध्यात्मिक गुरुओं की धरती रहा है। यहाँ समय-समय पर ऐसे संत और गुरु हुए हैं जिन्होंने समाज को नई दिशा दी। आधुनिक समय में सद्गुरु (जग्गी वासुदेव) का नाम विश्व-प्रसिद्ध है। वे केवल एक योगी ही नहीं बल्कि सामाजिक सुधारक, पर्यावरण कार्यकर्ता और प्रेरणादायी वक्ता भी हैं। आइए जानते हैं, उनके जीवन की पूरी कहानी — बचपन से लेकर आज तक।
सद्गुरु का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर (कर्नाटक) में हुआ। उनका पूरा नाम जगदिश वासुदेव है। बचपन से ही वे बहुत जिज्ञासु और प्रकृति-प्रेमी थे। उन्हें पेड़-पौधों, पहाड़ों और नदियों के बीच समय बिताना पसंद था।
उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य (English Literature) में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद वे व्यवसाय से जुड़े। उन्होंने पोल्ट्री फार्मिंग और कंस्ट्रक्शन का काम किया। परंतु उनके मन की गहराई में जीवन के सत्य और आध्यात्मिक खोज की प्यास हमेशा बनी रही।
साल 1982 सद्गुरु के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष था। मैसूर की चामुंडी हिल्स पर ध्यान करते समय उन्हें गहन आध्यात्मिक अनुभव हुआ। उस अनुभव में उन्हें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति का अहसास हुआ। यह पल उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।
उसके बाद उन्होंने अपने व्यवसाय को छोड़कर पूरी तरह योग और ध्यान के अभ्यास तथा उसके प्रसार को समर्पित कर दिया। उन्होंने योग कक्षाएँ लेना शुरू किया और उनकी सहज, सरल और हृदयस्पर्शी शैली से लोग जुड़ते चले गए।
1992 में सद्गुरु ने Isha Foundation की स्थापना की। यह एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसका मुख्यालय तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में वेल्लियंगिरी पहाड़ियों के पास स्थित है।
Isha Foundation के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
योग और ध्यान कार्यक्रम : लाखों लोगों को जीवन की दिशा देने वाले कार्यक्रम।\
Isha Vidhya : ग्रामीण बच्चों के लिए आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।
Project GreenHands : पर्यावरण को हरा-भरा बनाने की मुहिम।
Rally for Rivers और Cauvery Calling : जल और नदियों के संरक्षण के अभियान।
आज Isha Foundation दुनिया भर में सक्रिय है और लाखों लोग इससे जुड़े हुए हैं।
1999 में सद्गुरु ने कोयंबटूर स्थित Isha Yoga Center में ध्यानालिंग (Dhyanalinga) की स्थापना की। यह एक अद्वितीय ध्यान स्थल है जहाँ धर्म या जाति के भेदभाव के बिना कोई भी ध्यान कर सकता है।
2017 में यहाँ 112 फीट ऊँची आदियोगी शिव प्रतिमा भी स्थापित की गई, जिसे Guinness World Records में दर्ज किया गया। यह प्रतिमा योग और ध्यान का वैश्विक प्रतीक मानी जाती है।
सद्गुरु की शिक्षाएँ सरल और जीवन से जुड़ी होती हैं। वे कहते हैं कि आध्यात्मिकता कोई दूर की चीज़ नहीं बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी संभव है।
उनकी मुख्य बातें:
योग और ध्यान को जीवनशैली का हिस्सा बनाना।
Inner Engineering के माध्यम से आत्म-परिवर्तन।
आंतरिक शांति और आनंद की खोज।
जिम्मेदारी और सजगता से जीवन जीना।
पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण को अपना कर्तव्य मानना।
सद्गुरु ने पर्यावरण बचाने के लिए कई बड़े अभियान चलाए।
Rally for Rivers (2017) : नदियों के संरक्षण के लिए देशव्यापी यात्रा।
Cauvery Calling : किसानों के साथ मिलकर कावेरी नदी के किनारे पेड़ लगाना।
Save Soil Movement (2022) : मिट्टी की उर्वरता बचाने का वैश्विक आंदोलन।
इन अभियानों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा गया और लाखों लोग इससे जुड़े।
सद्गुरु को उनके कार्यों के लिए कई पुरस्कार मिले हैं।
2017 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
वे संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) और कई अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में अपने विचार रख चुके हैं।
समूह का नाम और ख्याति
सद्गुरु का संगठन Isha Foundation है, जो आज एक वैश्विक संस्था बन चुका है। उनकी ख्याति का कारण है —
योग और ध्यान की आधुनिक प्रस्तुति।
पर्यावरण और सामाजिक अभियानों का नेतृत्व।
हास्यपूर्ण, सहज और प्रेरणादायी शिक्षाएँ।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय उपस्थिति।
सद्गुरु (जग्गी वासुदेव) का जीवन इस बात का प्रमाण है कि आध्यात्मिकता केवल ध्यान या पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि यह शिक्षा, पर्यावरण और समाज सेवा में भी लागू हो सकती है। Isha Foundation के माध्यम से उन्होंने लाखों लोगों के जीवन को छुआ है। आज सद्गुरु विश्वभर में एक आध्यात्मिक गुरु, समाज सुधारक और पर्यावरण योद्धा के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका नाम और ख्याति न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में फैल चुकी है।