गाँव की याद में ग्रामाीण विकास के लिए समर्पित !
गाँव की याद में ग्रामाीण विकास के लिए समर्पित !
भारत की आध्यात्मिक परंपरा में अनेक संत, गुरु और विचारक हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर समाज को नई दिशा दी। भारतीय आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक ओशो, जिन्हें जन्म के समय चंद्रमोहन जैन और बाद में आचार्य रजनीश के नाम से जाना गया, ऐसे ही एक महान चिंतक और आध्यात्मिक गुरु थे। 20वीं शताब्दी के सबसे चर्चित और विवादित गुरुओं में से एक हैं। वे अपने निर्भीक विचारों, ध्यान की अनोखी पद्धतियों और स्वतंत्र जीवन दर्शन के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए। ओशो ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों को ध्यान और आत्मज्ञान की दिशा दिखाई।
ओशो का जन्म 11 दिसम्बर 1931 को मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव, रायसेन ज़िला में हुआ था। उनका असली नाम चंद्र मोहन जैन (Chandra Mohan Jain) था।
वे बचपन से ही बेहद जिज्ञासु और विद्रोही स्वभाव के थे।
वे बचपन से ही परंपरागत मान्यताओं को चुनौती देते और हर चीज़ को तर्क की कसौटी पर परखते थे।
उनका स्वभाव खेलों से अधिक प्रश्न पूछने और जीवन के रहस्यों को जानने में लगता था।
उन्होंने कम उम्र में ही मृत्यु, जीवन, आत्मा और ईश्वर के रहस्यों पर गहराई से चिंतन करना शुरू कर दिया।
उनका बचपन दादा-दादी के साथ गुज़रा, जहाँ उन्होंने ग्रामीण परिवेश में स्वतंत्रता, प्रेम और स्वच्छंद जीवन का अनुभव किया।
ओशो ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव और आसपास के शहरों जबलपुर में हुई।
दर्शनशास्त्र (Philosophy) में गहरी रुचि के चलते उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर (M.A.) किया और प्रथम स्थान प्राप्त किया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कॉलेज में प्राध्यापक (Lecturer) के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने।
शिक्षण कार्य के साथ-साथ उन्होंने पूरे भारत में व्याख्यान देना शुरू किया। वे सामाजिक ढोंग, धार्मिक पाखंड और अंधविश्वासों के खिलाफ खुलकर बोलते थे। इसी समय लोग उन्हें “आचार्य रजनीश” के नाम से पहचानने लगे।
युवावस्था से ही ओशो का झुकाव ध्यान और आत्मज्ञान की ओर था। उन्होंने विभिन्न साधना पद्धतियों का अभ्यास किया और अंततः अपनी अलग ध्यान पद्धति विकसित की जिसे उन्होंने डायनेमिक मेडिटेशन (Dynamic Meditation) नाम दिया। उनका कहना था:
धर्म केवल पूजा-पाठ या परंपरा नहीं है, बल्कि एक व्यक्तिगत अनुभव है।
जीवन में स्वतंत्रता, प्रेम और ध्यान ही सच्चा धर्म है।
वे समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता के खिलाफ खुलकर बोलते थे।
1960 के दशक में उन्होंने अपने अनुयायियों को “डायनमिक मेडिटेशन (Dynamic Meditation)” की नई पद्धति दी। इसमें शारीरिक गतिविधि, श्वास-प्रश्वास और गहन मौन का अनोखा मिश्रण था।
1970 में उन्होंने मुंबई में ध्यान शिविर आयोजित किए।
धीरे-धीरे उनके अनुयायी बढ़ते गए और उन्होंने पुणे (कोरेगाँव पार्क) में आश्रम की स्थापना की।
इस समय तक वे “भगवान श्री रजनीश” के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे।
1989 में उन्होंने स्वयं को “ओशो” कहलाना शुरू किया। "ओशो" शब्द का अर्थ है – सागर की तरह असीम चेतना।
ओशो के अनुयायियों ने “ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन” और विश्वभर में अनेक ओशो मेडिटेशन सेंटर स्थापित किए।
पुणे का ओशो आश्रम आज भी विश्व प्रसिद्ध है।
उनके अनुयायियों को “संन्यासी” कहा जाता है, जो ध्यान, योग, प्रेम और सेवा के मार्ग पर चलते हैं।
अमेरिका (ओरेगॉन) में उन्होंने राजनीशपुरम नामक विशाल कम्यून बसाया, जिसने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा।
ओशो की शिक्षाएँ किसी एक धर्म या मत तक सीमित नहीं थीं। वे जीवन के हर पहलू पर खुलकर बोलते थे। उनकी प्रमुख शिक्षाएँ थीं:
1. ध्यान (Meditation) – जीवन का मूल आधार।
2. प्रेम और स्वतंत्रता – बिना बंधनों के प्रेम ही सच्चा प्रेम है।
3. धर्म की नई परिभाषा – धर्म को संस्थाओं और ग्रंथों से अलग कर, व्यक्तिगत अनुभव का मार्ग बताया।
4. सकारात्मक जीवन – भोग और संन्यास दोनों का संतुलन।
5. विज्ञान और अध्यात्म का संगम – उन्होंने कहा कि सच्चा धर्म विज्ञान से विरोध नहीं करता, बल्कि उसका पूरक है।
1981 में ओशो अमेरिका गए और ओरेगॉन में राजनीशपुरम नामक विशाल आश्रम बसाया।
यहाँ हजारों अनुयायी जुड़ गए।
लेकिन स्थानीय प्रशासन और अमेरिकी सरकार के साथ विवाद शुरू हो गया।
उन पर आप्रवासन धोखाधड़ी और जैविक हमले की साज़िश जैसे आरोप लगे।
1985 में उन्हें गिरफ्तार कर भारत वापस भेज दिया गया।
हालांकि विवादों ने उनकी छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया, लेकिन उनकी लोकप्रियता विश्वभर में और बढ़ी।
भारत लौटने के बाद उन्होंने फिर से पुणे आश्रम में रहना शुरू किया।
1989 में उन्होंने “ओशो” नाम अपनाया।
19 जनवरी 1990 को उनका निधन हुआ।
आज पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट दुनिया का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र माना जाता है।
ओशो की किताबें 60 से अधिक भाषाओं में अनुवादित हैं।
“ओशो टाइम्स” और “ओशो वर्ल्ड” जैसे प्रकाशन उनकी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।
आधुनिक समय में भी लाखों लोग ओशो ध्यान तकनीकों का अभ्यास करते हैं।
उनका आश्रम आज भी युवाओं, कलाकारों और विचारकों के लिए प्रेरणा का केंद्र है।
कई लोग उन्हें “विवादित गुरु” कहते हैं क्योंकि उन्होंने पारंपरिक धार्मिक ढाँचों को तोड़ा।
अमेरिका में उनके आश्रम से जुड़े कानूनी विवाद भी चर्चित रहे।
लेकिन आलोचनाओं के बावजूद, वे 20वीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं।
ओशो (आचार्य रजनीश) का जीवन एक ऐसी यात्रा है जिसमें विद्रोह, ध्यान, प्रेम, विवाद और सत्य की खोज समाई हुई है। उन्होंने लोगों को सिखाया कि जीवन को बोझ नहीं, बल्कि उत्सव की तरह जियो।
उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है – क्योंकि वे हमें बताते हैं कि ध्यान, स्वतंत्रता और प्रेम के बिना जीवन अधूरा है।