आज का भारत एक मजबूत और तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है, लेकिन यह यात्रा आसान नहीं रही। भारत ने कैसे संघर्षों से गुजरकर एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनाई। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और RBI, SEBI, NITI Aayog, LIC, SBI जैसी संस्थाएँ इस विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आर्थिक सुधारों और संस्थागत समर्थन के बिना प्रगति संभव नहीं। अगर हम सही दिशा में कार्य करें, तो भारत जल्द ही एक विकसित राष्ट्र बन सकता है।
देश के वैज्ञानिक एवं अनुसंधानकर्ता के अनुभवों के माध्यम से भारत की आर्थिक यात्रा को इस प्रकार से समझा जा सकता है:-
शुरुआत 1947 में भारत की अर्थव्यवस्था: 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब देश की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। तब भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी, और औद्योगिक विकास ना के बराबर था। ब्रिटिश शासन के दौरान देश का आर्थिक शोषण हुआ और अधिकांश संपत्ति का नुकसान हो चुका था।
योजनाबद्ध विकास और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका: आजादी के बाद, भारत सरकार ने आर्थिक सुधार के लिए योजनाबद्ध विकास की रणनीति अपनाई। 1951 में पहला पंचवर्षीय योजना लागू की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना था। इसी समय भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
औद्योगिकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ (PSUs): 1960 और 70 के दशक में भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का तेजी से विकास हुआ। BHEL, SAIL, ONGC, और LIC जैसी संस्थाओं की स्थापना हुई, जिसने बुनियादी ढांचे को मजबूत किया और रोजगार के अवसर बढ़ाए।
हरित क्रांति और कृषि विकास: 1960 के दशक के मध्य में भारत खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने हरित क्रांति की शुरुआत की। वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन की मदद से नई कृषि तकनीकों, उच्च उत्पादकता वाले बीजों और सिंचाई सुविधाओं में सुधार हुआ, जिससे भारत आत्मनिर्भर बना।
1991 का आर्थिक सुधार: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: 1991 भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। जब भारत विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहा था, तब प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG Reforms) की नीति लागू की। इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक (SBI), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और SEBI (Securities and Exchange Board of India) जैसी संस्थाओं ने भारत की आर्थिक स्थिरता में योगदान दिया।
डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप क्रांति: 2014 के बाद, भारत ने डिजिटल क्रांति का अनुभव किया। UPI, डिजिटल भुगतान, स्टार्टअप इंडिया, और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं से नए उद्योगों और नौकरियों के अवसर बढ़े। इस समय NITI Aayog और SIDBI (Small Industries Development Bank of India) ने छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने में मदद की।